रुक्मिणी मंदिर
श्री रुक्मिणी मंदिर


श्री निमाड़ मठ ओंकारेश्वर
माता श्री रुक्मिणी परिचय
सर्वोत्तम भक्ती, माधुर्य द्वैत, वैशिष्ठ द्वैत के वरण और हरण के श्रीकृष्ण प्राप्ती की साधना, उपास्य की मार्गदर्शक प्रेम वात्सल्य की आराधक श्री रुक्मिणीजी है।
द्वापर युग में विदर्भ देश के महाराजा भीष्मक और उनकी महारानी के पुर्वजन्म के तपस्या के फलस्वरुप आदिजगतजननी माता ने पुत्री श्री रुक्मिणी के रूप में इस राज परिवार में जन्म लिया। उसी समय वसुदेव देवकी के पुत्र के रूप में श्री विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लिया। माता श्री रुक्मिणी प्रभु श्रीकृष्ण की लिला से प्रभावित होकर मन ही मन श्रीकृष्ण भगवान को अपने पति के रूप में मनोनित कर चुकी थी। लेकीन भाई रुक्मी रुक्मिणी का विवाह अपने मित्र शिशुपाल से कराने का निर्णय ले चुका था। इस विपरित स्थिति में श्रीकृष्ण को संदेश देकर माता रुक्मिणी ने विवाह की इच्छा प्रगट की। उस अनुसार श्रीकृष्ण द्वारका से कौंडण्यपुर आकर माता श्री अंबिका के मंदिर से श्री रुक्मिणी माता को साथ ले चले। भाई रुक्मी ने श्रीकृष्ण के साथ में युध्द करने पर पराजय स्वीकार किया और परिणामतः माता रुक्मिणी का विवाह श्रीकृष्ण के साथ संपन्न हुआ।
द्वापार युग में माता रुक्मिणी ने श्रीकृष्णभक्ती की धारा प्रवाहित की और उसी भक्ती की धारा में आज तक श्रीकृष्ण रुक्मिणी की उपासना अखिल विश्व कर रहा है।








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सर्वोत्तम भक्ती, माधुर्य द्वैत, वैशिष्ठ द्वैत के वरण और हरण के श्रीकृष्ण प्राप्ती की साधना, उपास्य की मार्गदर्शक प्रेम वात्सल्य की आराधक श्री रुक्मिणीजी है।
द्वापर युग में विदर्भ देश के महाराजा भीष्मक और उनकी महारानी के पुर्वजन्म के तपस्या के फलस्वरुप आदिजगतजननी माता ने पुत्री श्री रुक्मिणी के रूप में इस राज परिवार में जन्म लिया। उसी समय वसुदेव देवकी के पुत्र के रूप में श्री विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लिया। माता श्री रुक्मिणी प्रभु श्रीकृष्ण की लिला से प्रभावित होकर मन ही मन श्रीकृष्ण भगवान को अपने पति के रूप में मनोनित कर चुकी थी। लेकीन भाई रुक्मी रुक्मिणी का विवाह अपने मित्र शिशुपाल से कराने का निर्णय ले चुका था। इस विपरित स्थिति में श्रीकृष्ण को संदेश देकर माता रुक्मिणी ने विवाह की इच्छा प्रगट की। उस अनुसार श्रीकृष्ण द्वारका से कौंडण्यपुर आकर माता श्री अंबिका के मंदिर से श्री रुक्मिणी माता को साथ ले चले। भाई रुक्मी ने श्रीकृष्ण के साथ में युध्द करने पर पराजय स्वीकार किया और परिणामतः माता रुक्मिणी का विवाह श्रीकृष्ण के साथ संपन्न हुआ।
द्वापार युग में माता रुक्मिणी ने श्रीकृष्णभक्ती की धारा प्रवाहित की और उसी भक्ती की धारा में आज तक श्रीकृष्ण रुक्मिणी की उपासना अखिल विश्व कर रहा है।

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द्वापर युग में विदर्भ देश के महाराजा भीष्मक और उनकी महारानी के पुर्वजन्म के तपस्या के फलस्वरुप आदिजगतजननी माता ने पुत्री श्री रुक्मिणी के रूप में इस राज परिवार में जन्म लिया। उसी समय वसुदेव देवकी के पुत्र के रूप में श्री विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लिया। माता श्री रुक्मिणी प्रभु श्रीकृष्ण की लिला से प्रभावित होकर मन ही मन श्रीकृष्ण भगवान को अपने पति के रूप में मनोनित कर चुकी थी। लेकीन भाई रुक्मी रुक्मिणी का विवाह अपने मित्र शिशुपाल से कराने का निर्णय ले चुका था। इस विपरित स्थिति में श्रीकृष्ण को संदेश देकर माता रुक्मिणी ने विवाह की इच्छा प्रगट की। उस अनुसार श्रीकृष्ण द्वारका से कौंडण्यपुर आकर माता श्री अंबिका के मंदिर से श्री रुक्मिणी माता को साथ ले चले। भाई रुक्मी ने श्रीकृष्ण के साथ में युध्द करने पर पराजय स्वीकार किया और परिणामतः माता रुक्मिणी का विवाह श्रीकृष्ण के साथ संपन्न हुआ।
द्वापार युग में माता रुक्मिणी ने श्रीकृष्णभक्ती की धारा प्रवाहित की और उसी भक्ती की धारा में आज तक श्रीकृष्ण रुक्मिणी की उपासना अखिल विश्व कर रहा है।
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