Rukmini Pith

निर्वाण स्तंभ

आध्यात्मिक सक्षमीकरण : असत्य से मुक्ती, शाश्वत सत्य की प्राप्ती

जीवन और मुक्ती के दोऊ छोर, साकार निराकार परिवाहन है, प्राण व्यान है, उच्चतम आयाम ही आत्मब्रह्म है, जीवब्रह्म गतवान हो और परब्रम्ह में निर्वाण हो, यही है निर्वाण स्तंभ ।

प्रमुख हिन्दू त्योहार

दीपावली

श्री रुक्मीणी पीठ की प्रधान देवी श्री रुक्मीणी प्रत्यक्ष श्री महालक्ष्मी माता होने से प्रती वर्ष दिपावली का पांच दिन का त्योहार माता श्री महालक्ष्मी के वैदिक विधिवत पुजन अर्चन के साथ बड़े उत्साहपुर्ण वातावरणमें धुमधामसे मनाया जाता है ।

महाशिवरात्रि

श्री महालक्ष्मी धाम पाळा मे नर्मदेश्वर - सिद्धेश्वर की स्थापना वर्ष 2001 मे की गई है। यहां प्रतिवर्ष महाशिवरात्री महोत्सव मे भगवान शिवजी का पुजन अर्चन रुद्राभिषेक दिपोत्सव के साथ महाशिवरात्री को शिवनामसंकिर्तन किया जाता है । ईस उत्सव मे भक्त बडी संख्यामे उपस्थित रहकर सहभागी होते है।

नवरात्रि

प्रती वर्ष चैत्र तथा अश्विन नवरात्री मे श्री रुक्मिणी पीठ अंबिकापुर - कौंडण्यपुर, निमाड मठ श्री क्षेत्र ओंकारेश्वर, कपीलासंगम आश्रम अमरकंटक, महालक्ष्मी धाम पाळा, श्री वनदेवी धारुड मठ, शिवशक्ती धाम विठ्ठलापुर महाकाली धाम माऊली जहांगीर ईन सभी स्थानोंमे माता के विधिवत पुजन अर्चन के साथ व्रत अनुष्ठान रखकर नवरात्र उत्सव मनाया जाता है। महालक्ष्मी धाम पाळा पिछले कई वर्षों से माता महालक्ष्मी के चरणों में भक्तों द्वारा अपने परिवार के सदस्यों के नाम से अखंड पुण्यदीप नवरात्रि में प्रज्वलित किया जाता है। पुण्य मानवता की आधारशिला है, अखंड पुण्यदीप जीवन में सुख, शांति और समृद्धि के प्रकाश का प्रवेश है।

श्री कृष्णजन्माष्टमी

श्री क्षेत्र ओंकारेश्वर के निमाड़ मठ में प्रति वर्ष श्रावण कृष्णजन्माष्टमी को योगेश्वर श्रीकृष्ण भगवान के जन्मोत्सव वैदिक विधि विधान से पूजा अर्चना के साथ बड़ी धूमधाम से प्रति वर्ष मनाने रिवाज है।

श्री गणेशोत्सव

श्री चिंतामणि गणेश महाराष्ट्र के अमरावती में स्थित है। श्री चिंतामणि गणेश का विग्रह पूजनीय श्री जगद्गुरु ने ख़ुद के हाथों से वर्ष २०२१ में साकार किया । तबसे दैनिक पूजन के साथही विशेष रूप से गणेश उत्सव में इस विग्रह की पूजा विधि विधान से होती है। हर माह के कृष्ण पक्ष के चतुर्थ तिथि यानी संकष्टी चतुर्थी एवं माघ शुक्ल चतुर्थी जिसे गणेश जयंती के नाम से जानते है, उस दिन सुबह से भक्त दर्शन हेतु पधारते है। इन दोनों विशेष दिनों में शाम में क्रमशः सामूहिक अथर्वशिष पठन, आरती पश्चात प्रसाद का वितरण मंदिर की ओर से किया जाता है। अमरावती शहर में इस मंदिर को मानाचा गणपती के नाम से ख्याति प्राप्त है। चिंतामणी सरकार की उपासना से मनोकामना पूर्ति का अनुभव दर्शनार्थियों ने साझा किया है। वर्ष २०२१ से इसी विग्रह की छोटी प्रतिरूप मूर्ति बनाकर सामूहिक कुमकुम अर्चन अभिषेक करा कर उन मूर्तियों को इच्छुक भक्तों को दैनिक पूजा के लिए दिया जाता है। श्री चिंतामणि मंदिर की व्यवस्था का दायित्व चिंतामणि सेवा ट्रस्ट निभाती है। संपूर्ण अमरावती शहर में गणेश उत्सव में श्री गणेश यज्ञकी अनोखी परंपरा यहाँ शुरू की गई है।

वैशाख पौर्णिमा

वैशाख माह में पूर्णिमा के दिन सनतान के धार्मिक अनुष्ठान के संकल्प को पूर्णता प्राप्त होती है। ये दिन दान पुण्य और नर्मदा नदी में स्नान एवं पूजा अर्चना का महत्व है। इस दिन श्री निमाड़ मठ श्रीक्षेत्र ओंकारेश्वर मे प्रती वर्ष पंचक्रोशी के साधुसंतो के लिए भंडारे का आयोजन किया जाता है। ईस अवसरमे ब्राम्हणभोज का आयोजन किया जाता है ।

रामनवमी

अमरकंटक के फलहारी आश्रम मे प्राचिन श्री रामजानकी मंदिरमें प्रभु श्री रामजी माता श्री जानकीजी तथा भ्राता श्री लक्ष्मणजीकी मनोहारी विग्रहमुर्तीयोंकी चल स्थापना की गई है। अमरकंटक महत्वपूर्ण तीर्थक्षेत्र में श्रीरामनवमी का उत्सव का स्वरूप भव्य दिव्य साकारने हेतु वर्ष 2022 मे फलहारी आश्रम की ओरसे श्रीरामनवमी पर्वमे विशाल शोभायात्रा का आयोजन होता आ रहा है। सनातनियोंको प्रभु श्री रामजानकी तथा भ्राताश्री लक्ष्मण की विग्रहमुर्तीयोंकी पुरे नगरवासी शोभायात्रा का दर्शन प्राप्त करते है ।

श्रावणी

श्रावणपुर्णीमा को श्रावणी पर्व मे तर्पणपुजन करने के लिए सभी विप्रवर श्री निमाड़ मठ मे एकत्रीत होते है। श्रावणी कर्म परमपुज्य स्वामीजी के सानिध्य मे होनेके उपरान्त हवन कर भंडारा संपन्न किया जाता है ।

श्री नर्मदा जयंती

माघसप्तमी को श्री फलहारी आश्रम अमरकंटक तथा श्री क्षेत्र ओंकारेश्वर के निमाड़ मठ में माता श्री नर्मदाजयंती उत्सव बडी धुमधामसे मनाया जाता है। श्री माता नर्मदा का वैदिक विधी विधान से पुजन अर्चन नामसंकिर्तन के लाभसे उपस्थित भक्त धन्य हो जाते है।

अन्नकुट

कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को दीपावली के दूसरे दिन श्री गोवर्धन पूजा एवं अन्नकूट उत्सव श्री रुक्मिणी पीठ में भक्तों द्वारा मनाया जाता है। इस उत्सव में भक्तों की उपस्थिति बड़ी संख्या में रहेती है।

होली

फाल्गुन पूर्णिमा को श्री रुक्मिणी पीठ में होली का उत्सव मनाया जाता है । वनांचल क्षेत्रवासियों के साथ श्री क्षेत्र अमरकण्टक में रंगों की होली खेली जाती है। इस अवसर पर रंग गुलाल में सेन हुए क्षेत्रवासी पारम्परिक नृत्य गायन करते हुए माँ नर्मादीजी की पूजा अर्चा करने को आतुर रहेते है। साथ ही श्री जगद्गुरुजी का श्री चरणपूजन करने के पश्चात गुलाल आदि रंगों से मनाते हुए आनंदुत्सव मनाते है।

माँ वैशिष्ठा गंगा महा आरती

श्री रुक्मिणी पीठ अंबिकापुर- कौंडण्यपुर वशिष्ठा नदी के पश्चिम तट पर है । वशिष्ठा को आज वर्धा नदी के नामसे जाना जाता है, लेकीन ईसके प्राचिन ईतिहास की जानकारी पुराणोमें वर्णीत है । सनक, सनत, सनंदन तथा सनतकुमार ने श्रीविष्णु भगवान के चरण पखारनेसे जो गंगा प्रवाहित हुई उसे वशिष्ठ ऋषी ने अपने साथ विदर्भभुमी में साथ लाया ईसलिये यहां वैशिष्ठा और अपभ्रंशीत होकर आज वरदा से वर्धा नामसे जानी जाती है । पीठ पर श्री रुक्मीणी महोत्सव 2022 से श्रीगंगा आरती शुरू की गई है ।

माता श्री रुक्मिणी त्योहार

श्री रुक्मिणी महोत्सव

वर्ष २०१४ से अखिल भारतवर्षमे भक्तीधारा प्रवाहित करनेवाली जगतजननी माता श्री रुक्मिणी के जीवनचरित्र को जनमानस में प्रचारित करने हेतु श्री रुक्मीणी महोत्सव का आयोजन श्री रुक्मीणी पीठ मे प्रती वर्ष किया जाता है। इस साप्ताहिक महोत्सव में ७ दिसंबर से १२ दिसंबर तक विविध आध्यात्मिक और सामाजिक कार्यक्रमों में जनमानस की सहभागिता रहेती है।

माता श्री रुक्मिणी रथयात्रा

माता श्री रुक्मिणी त्योहार विदर्भ के अंबिकापुर कौंडण्यपूर तीर्थक्षेत्र में माता श्री रुक्मिणी की रथयात्रा ग्रामवासियों द्वारा निकाली जाती है। सुबह १२ दिसंबर को ब्रह्म मुहूर्त में षोडशोपचार पूजा करने के बाद अंबिकापुर से कौंडण्यपूर ग्रामप्रदक्षिणा पश्चात विदर्भ के विभिन्न दींडीयों द्वारा “रुक्मिणी वल्लभ कृष्ण हरी" नाम संकीर्तन के साथ भक्तिधारा में तल्लीन होकर श्री रुक्मिणी पीठ पर रथयात्रा का आगमन होता है। जिसके उपरांत उनका भावभीना स्वागत पूजन अर्चन संपन्न होता है।

माता श्री रुक्मिणी संकीर्तनयात्रा

ग्राम कौंडण्यपूर एवं ग्राम अंबिकापुर में प्रतिमाह एकादशी तिथि को पूजनीय श्री जगद्गुरुजी के प्रेरणा से संध्या समय में ग्राम के मुख्य मार्ग से होते हुए “रुक्मिणी वल्लभ कृष्ण हरि" के धुन पर दींडी निकाली जाती है।

श्री रुक्मिणीपीठ अंबिकापुर- कौंडण्यपूर वारी

श्री रुक्मिणी पिठ अंबिकापुर- कौंडण्यपुर को परमपुज्य स्वामीजी के अनुयायी माता श्री रुक्मिणी के उपासना हेतु व्रतस्थ रहकर "रुक्मिणी वल्लभ कृष्ण हरी" नामसंकिर्तन करते हुए नागपुर से कौंडण्यपुर तक पैदल वारी चलकर आते है। माता श्री रुक्मीणी और श्री कौंडण्याधिश के दर्शन से जीवन को धन्य करते है ।

श्री रुक्मिणी मंगल

माता श्री रुक्मिणीजी का भगवान श्री कृष्ण से विवाह जिस प्रतिकूल परिस्तिथि में हुआ लेकिन माता रुक्मिणी के अंतर्मन की भक्तिधारा की गहराई की प्रतिभा से प्रभावित होकर द्वारिका से श्री कृष्ण जी आगमन कौंडण्यपूर हुआ और माता श्री रुक्मिणी जी की मनोकामना पूर्ण हुई। इस ऐतिहासिक स्थिति को पद्य में श्री रुक्मिणी मंगल के नाम से उल्लेखित है। वर्तमान परिदृश्य में इसका महत्व जानते हुए विवाह इच्छुक युवक युवतियाँ श्री रुक्मिणी मंगल का पाठ अनुष्ठान रूपसे अपने विवाहिक जीवन को साकारने के लिए करते है।

श्री जगद्गुरु त्योहार और इव्हेंट्स

श्री जगद्गुरु राजेश्वरमाऊली जन्मोत्सव

पूजनीय जगद्गुरु श्री राजेश्वरमाऊली जन्मोत्सव को प्रतिवर्ष १२ दिसंबर को भक्तों द्वारा श्री रुक्मिणी पीठ के भव्य प्रांगण में सामाजिक और आध्यात्मिक कार्यक्रमों के माध्यम से बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।

श्री रामानंदाचार्य जयंती

श्री रामानन्द सम्प्रदाय के प्रवर्तक आद्य जगद्गुरु श्री रामानन्दाचार्य जी की जयंती माघ कृष्ण सप्तमी को प्रति वर्ष श्री रुक्मिणी पीठ पर मनायी जाती है।

श्री गुरुपौर्णिमा महोत्सव

सनातन वैदिक हिंदू धर्म की प्राचीन मान्यताओ के अनुरूप आषाढ़ी पूर्णिमा के दिन शिष्यों द्वारा श्रीगुरुदेव के प्रति कृतज्ञता भाव से समर्पित होकर श्री गुरुचरण कमल पूजन करने और गुरु अमृतवाणी से आशीर्वचन प्राप्त करने हेतु सभी अनुगृहीत एवं दीक्षा ग्रहण करने हेतु भक्तों की उपस्थिति भारी मात्रा में रहेती है।

राजयोग ध्यान उपक्रम

विश्व योगदिवस के रूप में भारत के प्राचीन ऋषियों की धरोहर योगविज्ञान जनमानस तक पहुँचाने हेतु राजयोग ध्यान शिबीर आयोजित किया जाता है।

पूजनीय जगद्गुरु श्री राजेश्वरमाऊली
पूजनीय जगद्गुरु श्री राजेश्वरमाऊलीधर्मगुरु, कवि और लेखक
शस्त्र और शास्त्र दोनों मानव के लिये ज़रूरी

पंचसूत्र योग का तत्त्व

पूज्यनीय जगद्गुरु ने मानव जीवन को समृद्ध कराने हेतु अज्ञान तथा असत्य से मुक्ति प्रात कर शाश्वत सुख का आनंद प्राप्त करने पंचसूत्र योग स्थापित किया है।